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Author: AM

Ayushya Mandiram / Articles posted by AM (Page 2)
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योग: आयु-आरोग्य-वृद्धि का प्रवेशद्वार

स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीवन जीना सिखाता है योग यह योगमार्ग आयु-आरोग्य-वृद्धि का प्रवेश द्वार है और वेदांत मार्ग का गंतव्य स्थान है, जो लोगों को शाश्वत आरोग्य प्रदान करता है और रोग-दोष, जरा-मरण-जैसी आधियों-व्याधियों से सदा के लिए मुक्त करता है। [mkdf_blockquote text="न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु: प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्।। (श्वेताश्वतर. 2/12)" title_tag="h5" width=""] आचार्य चरक ने इस बात को विस्तार से बताते हुए कहा है- [mkdf_blockquote text="नारो हिताहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्त:। दाता सम: सत्यपर: क्षमावानप्तोपसेवि च भवत्यरोगः। मतिर्वच: कर्म सुखानुबंधं सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धि:। ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे यस्यास्ति तं नानुपतन्ति रोग:।। (च. शा. 2.46-47) " title_tag="h5" width=""] अर्थात हितकारी आहार-विहार का सेवन करने वाला, विचारपूर्वक काम करने वाला, काम- क्रोधादि विषयों में आसक्त न रहने वाला, सत्य बोलने में तत्पर, सहनशील और आप्त पुरुषों की...

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स्वस्थ रीढ़: स्वस्थ और दीर्घायु जीवन

रीढ़ की मांसपेशियों व कड़ियों को बनाएं लचीला :  विशेष योगिक अभ्यास और सुझाव आज के इस युग में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसने कमर के दर्द को अनुभव न किया हो। कमरदर्द कोई रोग नहीं है अपितु इसके होने का कारण हमारी अनियमित दिनचर्या व उठने, बैठने, चलने व काम करने के गलत तरीकों के कारण होता है। जिस प्रकार एक पेड़ का तना जितना सीधा होगा, वह पेड़ और उसकी शाखाएं उतनी ही विकसित होंगी। इसी प्रकार हमारे सम्पूर्ण शरीर का विकास हमारी रीढ़ के ऊपर निर्भर करता है। हमारे शरीर के समस्त अंगों का जुड़ाव रीढ़ से ही है, क्योंकि जितनी हमारी रीढ़ लचीली व सीधी रहेगी, तो उससे जुडे़ समस्त अंगों को रक्त का संचार व प्राणिक ऊर्जा का प्रवाह...

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एक्यूप्रेशर थेरेपी में करियर कैसे बनाएं: सम्पूर्ण मार्गदर्शिका

एक्यूप्रेशर थेरेपी में करियर: आपके सुनहरे भविष्य की शुरुआत आजकल की व्यस्त और खराब जीवनशैली के कारण बहुत सी बीमारियां आम हो गई हैं। लोग भी अब इलाज के लिए दवाओं से ज़्यादा थेरेपी पर अधिक भरोसा करने लगे हैं, जिससे इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ती जा रही है। आजकल एक्यूप्रेशर थेरेपी में प्रशिक्षित अभ्यार्थियों की मांग प्राकृतिक चिकित्सालय, योग सेंटर्स, स्पा और अन्य हॉस्पिटैलिटी कंपनियों में बहुत अधिक है। क्या है एक्यूप्रेशर थेरेपी एक्यूप्रेशर एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा विधि है जिसमें शरीर की समस्याओं के लक्षणों को कम करने के लिए विशिष्ट बिंदुओं पर दबाव डालना शामिल है। एक एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट का मुख्य काम शरीर के विभिन्न बिन्दुओं पर दबाव डालकर रोगी को दर्द से मुक्ति दिलाता है। इसके लिए वह किसी भी तरह की...

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कलर थेरेपी: एक अद्भुत करियर विकल्प

क्या है कलर थेरेपी? आज के समय में लोग इलाज के लिए दवाईयों का सहारा नहीं लेते, बल्कि वैकल्पिक चिकित्सा पर अधिक जोर देते है। जिसके कारण कई तरह की चिकित्सा पद्धति अब प्रचलित होने लगी हैं। इन्हीं में से एक है क्रोमो थेरेपी। 'क्रोमो' का अर्थ है रंग और 'पैथी' का अर्थ उपचार-पद्धति।  इसे कलर थेरेपी, लाइट थेरेपी, हेलियो थेरेपी या कोलोरोलॉजी के नामों से भी जाना जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई तरह के रंग होते हैं जो हवा को शुद्ध करते हैं तथा वातावरण, पानी एवं जमीनी कीटाणुओं का नाश करते हैं। यह सब नैसर्गिक रूप से नियमित होता है। क्रोमोपैथी-पद्धति द्वारा कई प्रकार के रंगों से तरह-तरह के पुराने और नए रोगों को ठीक किया जा सकता है, विशेषत: स्पॉन्डोलाईटिस, आर्थोरेटिस, सन्धिवात, सर्दी,...

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ध्यान: बाहर से भीतर की यात्रा

ध्यान  क्या है ? जीवन की लय को, जीवन संगीत में बदल देना ध्यान है। यह कोई अतिरिक्त कार्य नहीं, बल्कि जीवन का नियमित कार्य है। इसी से जीवन सुगठित-सुव्यवस्थित एवं प्राकृतिक बनता है। ध्यान सर्वाधिक प्रभावोत्पादक मानसिक तथा तन्त्रिका टाॅनिक है। जिसके द्वारा प्रारम्भ से ही शान्ति और स्थिरता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। ध्यान से चंचल इच्छाओं, मन में उठने वाले विचारों तथा संवेगों की प्रतिक्रियाओं से मुक्ति मिलती है। नित्य प्रति ध्यान करने से रक्त में कोलेस्ट्राल कम होता है तथा प्लाज्मा कार्टीसोल का स्तर भी कम होता है। यही दोनों मानसिक उद्विग्नता के लिए उत्तरदायी हैं। इसके अतिरिक्त अनेक जैव-रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो मन को शांत करने में सहायता करते हैं। जैसे-जैसे ध्यान में प्रगति होती है, मानसिक उपद्रवों और...

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पाप और रोगों का संबंध: एक अनजाना रिश्ता

रोगों का मूल कारण क्या है? आयुर्वेद के अनुसार व्याधि-चिकित्सा के दो अंग हैं। 'रोगानुत्पादनीय' अर्थ व्याधि हो ही नहीं, इसका प्रयास किया जाए और 'रोगनिवर्तनीय' अर्थात् व्याधि उत्पन्न होने पर उसे दूर करने का प्रयास किया जाये। इन दोनों में से आयुर्वेद की दृष्टि में प्रथम अंग (व्याधि हो ही नहीं) का महत्त्व अधिक है और इसी प्रथम अंग की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। रोग का प्रादुर्भाव हो ही नहीं, इसलिये यह जानना आवश्यक है कि रोगों का मूल कारण क्या है? पाप और रोगों का एक गहरा रिश्ता है। रोग शरीर में हो या मन में हों-इनके बीज अवचेतन मन की परतों में छिपे होते हैं। आयुर्वेद को व्यवस्थित रुप देने वाले महर्षि चरक के अनुसार पिछले जन्मों के पाप (अयोग्य कर्म से...

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