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शरीर में उपस्थित विषों को बाहर निकालने वाली गीली चादर लपेट

Ayushya Mandiram / Naturopathy  / शरीर में उपस्थित विषों को बाहर निकालने वाली गीली चादर लपेट
Nature Cure-Hydrotherapy

शरीर में उपस्थित विषों को बाहर निकालने वाली गीली चादर लपेट

जल चिकित्सा में जल का प्रयोग : गीली चादर लपेट

योग एवं प्राकृतिक चिकित्सक आचार्य जयप्रकाशानन्द द्वारा जल चिकित्सा में प्रयुक्त गीली चादर लपेट पर लेख

जब हम जल चिकित्सा में जल का प्रयोग करते हैं, तो उसके दो प्रमुख रूप हमारे सामने आते हैं। प्रथम जल का बाह्य प्रयोग, द्वितीय आन्तरिक प्रयोग किये जाते हैं। आज इस लेख में हम जल के बाहरी प्रयोगों में से 1) गीली चादर लपेट 2) गीली चादर पर लेटना 3) लेटने और ढकने का प्रयोग एक साथ के विषय पर चर्चा करते हैं-

1) गीली चादर लपेट

आवश्यक सामग्रीः चिकित्सकीय उपचार हेतु मेज अथवा तख्त, एक छह फीट लम्बी सूती सफेद चादर, दो ऊनी कम्बल, एक पतला कपड़ेका टुकड़ा, एक प्लास्टिककी चादर, सिर गीला बनाए रखने के लिए दो छोटे तौलिए, सामान्य तापक्रम का जल तथा मग आदि।
विशेष सामग्रीः यदि नीम के पत्ते उपलब्ध हो सकें तो सफेद चादर को नीम के पत्तों से युक्त उबले पानी में भिगोने के बाद अच्छी तरह निचोड़कर उपयोग में लायें। गर्मी में चादर ठण्डे पानी में तया जाड़े में गर्म पानी में भिगो कर निचोड़ कर उपयोग में लायी जाती है।

जल का तापक्रमः 80 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट तक।
समयावधिः 30 मिनट से 45 मिनट तक।

Nature Cure-Water Treatment

   प्रथम चरण

विधिः गीली चादर लपेट के लिए सर्वप्रथम चिकित्सकीय मेज पर एक अथवा व बल बिछा देते हैं। तत्पश्चात सूती चादर को अच्छी प्रकार जल में भिगोने के बाद अथवा नीमके पत्तोंसे युक्त उबले पानीमें भिगो-निचोड़कर इन कम्बलों के ऊपर बिछा दिया जाता है। अब रोगी का सिर, चेहरा ठंडे पानी से धो-पोंछकर एक गिलास गर्म पानी पिलाये तथा सिर पर गीला तौलिया बाँधे। फिर लंगोट या कौपीन बाँधकर रोगीको निर्वस्त्र लिटा दे।

Nature Cure-Water Treatment

दूसरा चरण

पहले हाथोंको बाहर निकालकर सूती गीली चादर में धड़को लपेट दे, फिर दोनों पैरों को अच्छी तरह लपेटकर हाथों एवं गर्दन को भी लपेट दे ताकि सारा शरीर गीली चादर के सम्पर्क में ही रहे। अन्दर हवा न प्रवेश कर पाये इसलिए गले के आसपास मोटा ऊनी कपड़ा लपेट देना चाहिए। ऊपर से कम्बलको भलीभाँति लपेट दे। अथवा प्लास्टिक की चादर भी लपेटकर ऊपर कम्बल लपेट सकते हैं। उपरोक्त विधिपूर्वक रोगी को लपेट देने से पांच मिनट रोगी को ठंड की अनुभूति होती है। तत्पश्चात् (यदि पसीना नहीं आ रहा हो तो) पाँच से पंद्रह मिनट में शरीर से गर्मी निकलकर पसीना आने लगता है। त्वचा सक्रिय होकर रक्त संचार तीव्र होने लगता है। कमजोर रोगी के शरीर में अधिक पसीना लाने के लिए रोगी के पैरों के नीचे गर्म जल की बोतल भी रखी जा सकती है।

Nature Cure-Hydrotherapy

तीसरा चरण

इसका प्रयोग 30 से 40 मिनट तक करना चाहिए। इससे ज्यादा देर प्रयोग करने से चादर गर्म हो जायेगी। निश्चित समय पूरा होने पर चादर उतार कर कपड़े पहनने के बाद रोगी को कुछ व्यायाम कराना चाहिये पर इसके पूर्व जब तक साधरण उष्णता न आ जाये तब तक रोगी बिस्तर पर ही रहना चाहिये।

(2) गीली चादर पर लेटना

यह प्रथम विधि से मिलता-जुलता ही प्रयोग है। इसको बिस्तर पर ही करते है। अतः बिस्तर भीगने से बचाने के लिए उस पर मोटा कपड़ा डाल देते हैं, फिर उस पर ऊनी कम्बल बिछा देना चाहिए। तत्पश्चात एक मोटी सूती चादर को अच्छी प्रकार जल में भिगोने के बाद अथवा नीम के पत्तों से युक्त उबले पानी में भिगो-निचोड़कर इन कम्बलों के ऊपर इस प्रकार बिछा दिया जाता है कि वह गर्दन के छोर से रीढ़ के छोर तक पहुँच जाये अर्थात् पूरी पीठ उस पर रहे। रोगी को पीठ के बल उस पर लिटा दिया जाता है, और फैला कम्बल उस पर लपेट दिया जाता है, इससे बाहर की हवा अन्दर नहीं घुस पाती है। इस तरह 15-20 मिनट तक पड़े रहने से पसीना आता है और शरीर की गर्मी निकलती है। यह प्रयोग 45 मिनट तक किया जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य रीढ़ की हड्डी को सशक्त बनाना है। इसका प्रयोग कटिवात रक्त संकुलता तथा ज्वर के समय देने से अच्छा परिणाम मिलता है।
विशेष
सलाह:  1) बुखार की अवस्था में 20 से 30 मिनट पश्चात् चादर हटा देना चाहिए।
2) निमोनिया की अवस्था में चादर को पहले ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ें, फिर गर्म पानी में; तत्पश्चात् ही उसका प्रयोग करें।

(3) लेटने और ढकने का प्रयोग एक साथ

इसमें दोनों प्रयोग एक सांय किये जाते हैं, रोगी को चादर ऊपर बताये गये तरीके से तैयार कर दी जाती है। रोगी कपड़े उतार कर गीली चादर पर लेट जाता है, फिर दूसरी से स्वयं को ढक लेता है। यह कार्य कम्बल से अच्छा होता है इसमें वायु अन्दर प्रवेश नहीं कर पाती हे। कम्बल वहां तथा चैड़ा होना चाहिए। अधिक मोटे रोगी के लिए दो कम्बल का प्रयोग सही होगा। इसका प्रयोग 45 मिनट से कम और एक घन्टे से अधिक नहीं करना चाहिए।

लाभ: शरीर की अत्यधिक गर्मी या ज्वर, वायु, शरीर के किसी अंग में अधिक रक्तसंग्रह और विषाद रोग आदि में यह प्रयोग उपयोगी सिद्ध होता है।

गीली चादर के रोगों में लाभकारी प्रभाव

गीली चादर लपेट मूल रुप से शरीर में उपस्थित विषों को त्वचा के माध्यम से शरीर से बाहर निकालती है जिसके परिणामस्वरुप शरीर की जीवनीशक्ति एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है। गीली चादर लपेट के शरीर पर लाभकारी प्रभाव इस प्रकार से हैं-

  1. गीली चादर लपेट से स्वेद ग्रन्थियों की क्रियाशीलता बढ़ती है, इसके प्रभाव से शरीर में जमा विषाक्त तत्व पसीने द्वारा शरीर से बाहर निकलते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार के त्वचा रोग में लाभ मिलता है।
  2. गीली चादर लपेट से शरीर में कोशिकाओं की जल अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरुप त्वचा की झुर्रियां दूर होती हैं।
  3. गीली चादर लपेट से त्वचा के नीचे स्थित अतिरिक्त चर्बी पिंघलती है, जिससे शरीर का अनावश्यक बढ़ा वजन संतुलित होता है।
  4. इस पैक से रक्त मलहीन होकर स्वच्छ व शुद्ध होता है, जिससे रक्तचाप संतुलित होता है और हृदय सबल होता है।
  5. गीली चादर लपेट से शरीर की चयापचय दर संतुलित होती है, जिससे शरीर उर्जावान बनता है।
  6. गीली चादर लपेट से पाचनतंत्र की क्रियाशीलता बढ़ती है, यकृत स्वस्थ एवं सक्रिय बनता है, भूख अच्छी लगती है तथा कब्ज, अपच आदि उदर रोग दूर होते हैं।
  7. गीली चादर लपेट से मांसपेशियों की क्रियाशीलता बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरुप पेशियों से संबंधित दर्दों से राहत मिलती है।
  8. इस पैक के प्रयोग से गुर्दो पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरुप मूत्र अवरोध दूर होता है।
  9. गीली चादर लपेट से शरीर के स्नायुओं में स्थित मल का निष्कासन होता है, जिससे स्नायु स्वस्थ, सक्रिय एवं सशक्त बनते हैं।
  10. गीली चादर लपेट से मानसिक तनाव, घबराहट, बैचेनी आदि मानसिक रोग दूर होते हैं।
  11. यह गीली चादर लपेट अनिद्रा रोग में विशेष लाभकारी प्रभाव रखता है।

सावधानियां

  1. यह लपेट देने से पूर्व रोगी को दो से चार गिलास सामान्य अथवा गुनगुने ताप का जल पिला देना चाहिए। आवश्यकता अनुभव होने पर रोगी को लपेट अवधि के मध्य में भी जल पिलाया जा सकता है।
  2. रोगी के सिर को जल से अच्छी तरह भिगो-पोछकर ही लपेट देनी चाहिए एवं लपेट के समय रोगी के सिर पर ठंडे जल में भिगोकर निचैड़ा गया तौलिया अवश्य रखना चाहिए तथा यह तौलिया गर्म होने पर दोबारा से ठंडे जल में भिगोकर रोगी के सिर पर रखना चाहिए।
  3. कमजोर एवं वृद्ध रोगियों के शरीर को पहले सूखी मालिश अथवा धूप स्नान द्वारा गर्म करने के बाद ही लपेट देना चाहिए। कमजोर रोगी के हाथों को चादर लपेट से बाहर भी रखा जा सकता है तथा कमजोर रोगी जिसे ठण्ड लग रही हो, उसके आस-पास गर्म पानी की बोतल लगा देना चाहिए।
  4. उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी, मिर्गी रोगी, त्वचा में घाव अथवा सर्जरी, किसी भाग में सूजन, अवसाद से ग्रस्त रोगी एवं रोग की तीव्र अवस्था में यह लपेट नहीं देनी चाहिए।
    महिलाओं को मासिक रक्तस्राव तथा गर्भावस्था काल में यह लपेट नहीं देना चाहिए।
  5. रोगी की शारीरिक स्थिति अथवा क्षमतानुसार ही समय निर्धारित करते हुए लपेट देनी चाहिए। यदि लपेट के दौरान रोगी को घबराहट अथवा बैचेनी होने पर लपेट को खोलकर रोगी को स्नान कराना चाहिए।
  6. रोगावस्था में गीली चादर लपेट सदैव प्राकृतिक चिकित्सक की देख-रेख में ही लेना चाहिए।
  7. वैसे तो गीली चादर पर लेटना विधि को भी खाली पेट ही इस्तेमाल में लाना चाहिए, लेकिन नाश्ते के एक घण्टे के बाद भी यह विधि अपनाई जा सकती है तथा लपेट पूर्ण हो जाने के एक घण्टे बाद तक कुछ भी नहीं खाना-पीना चाहिए।

अस्वीकरणः जल चिकित्सा के अंतर्गत गीली चादर लपेट सदैव योग्य एवं कुशल चिकित्सक की देख-रेख में ही लेना चाहिए। इस साइट पर सभी लेख केवल आपकी जागरुकता एवं जानकारी के लिए हैं। स्वयं चिकित्सक न बनें अन्यथा शारीरिक नुक्शान हो सकता है, अत: इनसे होने वाले किसी भी प्रकारके लाभ या हानिके हम जिम्मेवार नहीं है।

AM

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