दिवाली की सफाई — माइंडफुल लिविंग और आरोग्य का उत्सव

दिवाली की सफाई — माइंडफुल लिविंग और आरोग्य का उत्सव
सम्पादकीय • आयुष्य मन्दिरम् विद्या भवन
स्वच्छता: समृद्धि का द्वार, आरोग्य का आधार
सनातन परंपरा में दिवाली केवल प्रकाश का पर्व नहीं—यह अन्तर और बहिर् शुद्धि का महापर्व है। देवी लक्ष्मी का वास स्वच्छ व पवित्र स्थानों में माना गया है; इसी प्रासंगिकता से घर की व्यापक सफाई का चलन आया। पुराना और टूटा-फूटा सामान हटाना केवल भौतिक सफाई नहीं है—यह मानसिक बाधाओं, आलस्य और नकारात्मक ऊर्जा को त्यागने का प्रतीक है।
माइंडफुल लिविंग का अभ्यास: बाहरी सफाई, भीतर की शांति
एक सुव्यवस्थित और स्वच्छ वातावरण मस्तिष्क के भार को कम करता है और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है। अव्यवस्था तनाव और चिंता को बढ़ा सकती है; नियमित सफाई एक प्रकार की व्यवहारिक माइंडफुलनेस है जो मनोवैज्ञानिक लाभ देती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सफाई से रोगमुक्ति तक
ऋतु परिवर्तन के समय कीटाणु, फफूंदी और कीटों का खतरा बढ़ता है। घर के कोनों की सफाई, पर्दों और वस्त्रों की धुलाई, सूरज की रोशनी व वायु-परिवहन—ये सभी उपाय संक्रमण और एलर्जी के जोखिम को कम करते हैं। पारंपरिक घरेलू तरीकों के वैज्ञानिक अध्ययन भी घरेलू-जीवाणुओं और धूल को नियंत्रित करने में उपयोगी पाए गए हैं।
आध्यात्मिक विज्ञान: दीप और ऊर्जा की शुद्धि
दीप का प्रज्ज्वलन वातावरण और चेतना दोनों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। स्वच्छ वातावरण, सामूहिक श्रद्धा और सजगता मिलकर त्योहार की ऊर्जा को निर्मल बनाती हैं, जिससे समृद्धि और सुकुन के भाव उभरते हैं।
आयुष्य मन्दिरम् की दृष्टि
हमारा मानना है कि स्वच्छता, सजगता और साधना एक दूसरे से अंतर्निहित हैं। दीर्घकालीन आरोग्य के लिए केवल दवा नहीं, बल्कि दिनचर्या, स्वच्छता और मानसिक अनुशासन जरूरी है।