कुणाल बढ़ता गया… बिना बोले – एक बाल कथा
गर्मी की छुट्टियों में कुणाल अपने दादाजी के गाँव आया। शहर की ऊँची इमारतों और मोबाइल स्क्रीन से दूर गाँव की खुली हवा और हरियाली उसे शुरू में अजीब लग रही थी, लेकिन कुछ ही दिनों में वह सुबह जल्दी उठने, आम के पेड़ों के नीचे भागने, और मिट्टी में खेलने का आदी हो गया।
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एक सुबह जब सूरज हल्के नारंगी रंग में आसमान से झाँक रहा था, कुणाल अपने दादाजी के साथ गाँव के बाहर खेतों की ओर टहलने निकला। खेत के एक कोने पर एक बहुत ऊँचा, सीधा, शांत खड़ा ताड़ का पेड़ था। उसका तना बिना किसी टेढ़ेपन के ऊपर आकाश की ओर बढ़ता चला गया था। नीचे कोई शाखा नहीं थी — मानो वह पेड़ नहीं, एक लंबी साँस हो।
कुणाल की नज़र उसी पर अटक गई। वह देर तक उसे देखता रहा। उस पेड़ में एक अनकही शांति और गहराई थी, जैसे वह कुछ कह रहा हो।
उस दिन के बाद वह रोज़ सुबह उसी पेड़ के पास जाने लगा। वह चुपचाप वहाँ खड़ा होता, जैसे पेड़ से कुछ सीखने की कोशिश कर रहा हो।
धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि जब वह उस पेड़ के सामने खड़ा होता है, और दोनों हाथ ऊपर उठाकर लंबा खिंचने की कोशिश करता है, तो उसका शरीर हल्का लगता है — जैसे उसका कद सच में बढ़ रहा हो। उसने यह रोज़ करना शुरू कर दिया, और जल्द ही यह उसका अभ्यास बन गया। उसने किसी से नहीं कहा, लेकिन अब वह हर सुबह सूरज उगने से पहले उठता, मुँह हाथ धोता, और चुपचाप ताड़ के पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो जाता।
शरीर के साथ-साथ कुछ और भी बदल रहा था — उसकी आदतें।
अब उसे खुद-ब-खुद मीठा कम अच्छा लगने लगा, और वह दोपहर को दादी से ज्यादा सब्ज़ियाँ माँगने लगा। उसे महसूस हुआ कि जब वह हल्का, ताज़ा और पौष्टिक खाना खाता है, तो उसका शरीर और मन दोनों बेहतर महसूस करते हैं। वह सुबह से लेकर शाम तक चंचल तो रहता, लेकिन थकता नहीं।
कुछ ही हफ्तों में, उसकी माँ ने देखा कि कुणाल अब बिना कहे समय पर सोने चला जाता है, और सुबह खुद से उठ जाता है। दिन में वह अपने छोटे भाई के साथ लड़ने की जगह अब उसे पढ़ाने लगा था। दादी के पास बैठकर कहानी सुनता और उनकी मदद करता। उसने किसी को नहीं बताया कि क्यों, पर उसके भीतर कुछ बदल रहा था — जैसे वह बड़ा हो रहा हो, सिर्फ उम्र से नहीं, आत्मा से।
एक दिन स्कूल खुला। जब वह स्कूल गया, तो उसके पुराने दोस्त उसे देखकर चौंक गए। उसका चेहरा चमक रहा था, चाल में आत्मविश्वास था, और वह पहले से एक इंच लंबा भी लग रहा था।
पर असली बदलाव यह था कि अब वह दूसरों से आगे निकलने की होड़ में नहीं था। वह बस अपनी गति से, अपनी सादगी में, शांति से बढ़ रहा था — जैसे वह ताड़ का पेड़।
उसकी कक्षा में जब शिक्षक ने योग का अभ्यास करवाया, तो कुणाल ने सबसे सुंदर ताड़ासन किया। उसकी मुद्रा देखकर शिक्षक ने उसे मंच पर बुलाया और कहा, “यह लड़का सिर्फ लंबा नहीं हुआ है, यह ऊँचा हुआ है।”
कुणाल मुस्कराया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
उसे पता था कि असली लंबाई सिर से नहीं, सद्गुणों से नापी जाती है।
कहानी से सीख:
जो बच्चा
- सूरज के साथ उठता है,
- ताड़ की तरह खड़ा होता है,
- स्वच्छ और सात्विक आहार खाता है,
- दूसरों की मदद करता है,
- और ऊँचे विचार रखता है —
वह अपने आप ऊँचाई को पा लेता है,
बिना शोर किए, बिना जल्दी किए।