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नचिकेता, यमराज और नरक चतुर्दशी: भय पर ज्ञान की विजय 

Ayushya Mandiram / आयुष्य मन्दिरम् समाचार (Ayushya Mandiram News)  / नचिकेता, यमराज और नरक चतुर्दशी: भय पर ज्ञान की विजय 
Nachikesta aur Yamraj

नचिकेता, यमराज और नरक चतुर्दशी: भय पर ज्ञान की विजय 

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मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो : दीपावली विशेष

आयुष्य मन्दिरम् । रेवाड़ी। : दीपावली के पाँच दिवसीय महापर्व में, नरक चतुर्दशी का दिन एक विशेष महत्व रखता है। इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं और यह दिन हमें अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का संदेश देता है। यह विजय सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी होती है। इसी आंतरिक संघर्ष और ज्ञान की खोज को समझने के लिए हमें नचिकेता और यमराज के पौराणिक संवाद में गहराई से उतरना होगा, जो हमें इस दिन के वास्तविक अर्थ से जोड़ता है।
नरक चतुर्दशी का एक प्रमुख विधान यमराज की पूजा और यमदीप जलाना है। मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। लेकिन यमराज सिर्फ मृत्यु के देवता नहीं, बल्कि धर्म और ज्ञान के संरक्षक भी हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण कठोपनिषद में वर्णित नचिकेता और यमराज का संवाद है।

नचिकेता: एक निडर जिज्ञासु

नचिकेता एक ऐसा बालक था जिसने अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासा के आगे सांसारिक सुखों को तुच्छ समझा। जब उसके पिता ने यज्ञ में बूढ़ी और अनुपयोगी गायों का दान किया, तो नचिकेता ने पिता से प्रश्न किया कि जब आप अपना सबसे प्रिय दान करते हैं, तो मुझे क्यों नहीं? पिता ने क्रोध में उसे यमराज को दान देने की बात कह दी। नचिकेता ने इसे पितृ आज्ञा मानकर यमलोक का मार्ग अपनाया।
यमराज के घर तीन दिन तक भूखे-प्यासे प्रतीक्षा करने के बाद, यमराज उसकी दृढ़ता से प्रभावित हुए और उसे तीन वरदान दिए। पहले दो वरदानों में नचिकेता ने सांसारिक और यज्ञ संबंधी ज्ञान माँगा, परंतु तीसरे वरदान में उसने मृत्यु के रहस्य और आत्मा की अमरता के बारे में जानना चाहा।

 

कठोपनिषद से यम-नचिकेता संवाद के कुछ महत्त्वपूर्ण श्लोक:

आत्मा की अमरता का ज्ञान: यमराज नचिकेता को आत्मा के बारे में बताते हैं:

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो  नित्यः  शाश्वतोऽयं  पुराणो  न  हन्यते  हन्यमाने शरीरे॥

अर्थ: “आत्मा न तो कभी जन्म लेती है और न मरती है। यह न तो होकर फिर नहीं होगी, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मरती।”

सत्य और प्रिय के मार्ग का विवेक: यमराज कहते हैं कि मनुष्य के सामने दो मार्ग होते हैं:

श्रेयश्च   प्रेयश्च   मनुष्यमेतस्तौ  सम्परीत्य  विविनक्ति  धीरः।
श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते॥

अर्थ: “श्रेय (कल्याणकारी मार्ग) और प्रेय (सुखद मार्ग) मनुष्य के सामने आते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति श्रेय का चुनाव करता है, जबकि मूर्ख व्यक्ति शारीरिक सुख-सुविधाओं के लिए प्रेय को चुनता है।”

नरक चतुर्दशी का गहरा अर्थ और मंत्र

नरक चतुर्दशी पर यमदीप जलाने का यह प्रतीकात्मक अर्थ है कि हम भी नचिकेता की तरह अपने भीतर के अज्ञान और मृत्यु के भय को समाप्त करें। नरक शब्द का अर्थ सिर्फ पाताल लोक नहीं, बल्कि हमारे भीतर का अंधकार, वासना और अज्ञान भी है। नरकासुर का वध करने वाले श्रीकृष्ण का कार्य भी इसी आंतरिक अंधकार को नष्ट करने का प्रतीक है।

इस दिन, यमदीप दान के समय एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है:

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रियतां मम॥

अर्थ: “कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इस दीपदान से मृत्यु के पाश से मुक्त होकर, काल और श्यामा (यम की पत्नी) सहित सूर्यपुत्र यमराज मुझ पर प्रसन्न हों।”

 

आज के समय में, जब दुनिया भौतिक सुखों के पीछे भाग रही है, नचिकेता का त्याग और उसकी ज्ञान की लालसा हमें एक नई दिशा देती है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख क्षणिक भोगों में नहीं, बल्कि आत्मज्ञान में है। नरक चतुर्दशी हमें यह अवसर देती है कि हम अपने जीवन के विकारों को दूर कर, आंतरिक प्रकाश को जागृत करें।

जिस तरह यमराज ने नचिकेता के ज्ञान की प्यास को बुझाया, उसी तरह यह पर्व हमें अपने भीतर के यम यानी अनुशासन और संयम से मिलकर जीवन के रहस्यों को जानने के लिए प्रेरित करता है। आइए, इस नरक चतुर्दशी पर सिर्फ एक दीपक न जलाएं, बल्कि अपने भीतर की चेतना को प्रज्वलित करें, ताकि हम भी नचिकेता की तरह मृत्यु के भय से मुक्त होकर अमरत्व की ओर बढ़ सकें।

✍️ लेखक परिचय

आचार्य डॉ. जयप्रकाशानन्द

आचार्य डॉ. जयप्रकाशानन्द
(योग एवं प्राकृतिक चिकित्सक)
संस्थापक: आयुष्य मन्दिरम्
प्रधान सम्पादक: द वैदिक टाइम्स समाचार पत्र

पिछले 22 वर्षों से वैदिक चिकित्सा पद्धतियों — योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, ज्योतिष, वैदिक गणित आदि — के सतत प्रचार-प्रसार में संलग्न एक समर्पित साधक।

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

Lead me from untruth to truth. Lead me from darkness to light. Lead me from death to immortality.

 

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