आकाश, वायु तथा अग्नि के पश्चात् चैथा स्थान जलतत्व का है। जल भी अन्य तत्वों की तरह हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जल जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना सांस लेने के लिए वायु। सामान्यतः हमारे शरीर में 55 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक जल होता है। खाद्य पदार्थों के पश्चात् हमारा शरीर जल पर ही निर्भर रहता है। अतः जल का महत्व स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक है। स्थूलता के आधार पर जल तत्त्व दूसरा स्थूलतम् तत्त्व है जिसे सामान्य भाषा में पानी, वारी, नीर, तोय, अम्बु, सलिल, आप, उदक तथा अमृत आदि स्थानों से जाना जाता है। यह जल तत्व जीवशक्ति के जीवन का आधार होता है। इस तत्व की कमी से मनुष्य के दैनिक जीवन और निमैथिक कार्यों में रुकावट पैदा होती है।
जल में विशेष गुण यह भी है कि इसमें कई पदार्थ घुलनशील हो जाते हैं तथा जल कई पदार्थों में समाहित हो जाता है, जिसके कारण सभी चिकित्सा पद्धतियों में जल का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि जल में घुलनशील क्षमता होती है जिसके कारण रोगी के उपचार में सहायता मिलती है। जल के द्वारा शरीर ही नहीं बल्कि किसी भी पदार्थ को स्वच्छ किया जा सकता है तथा जल से प्यास बुझाने के साथ-साथ दिनचर्या के कई काम किए जाते हैं। जल में अग्नि को ग्रहण करने की क्षमता होती है और जल अपना रुप परिवर्तित कर सकता है। जल एक औषधि की तरह भी काम करता है।
जल के अमृतोपम गुण
जल में जो गुण होते हैं, उन्हें भली-भाँति स्मरण रखना चाहिए। शीतलता, तरलता, हल्कापन एवं स्वच्छता इसके प्राकृतिक गुण हैं। भ्रम, क्रान्ति, मूच्र्छा, पिपासा, तन्द्रा, निद्रा को दूर करना, शरीर को बल देना, उसे तृप्त करना, हृदय को प्रफुल्लित करना, शरीर के दोषों को दूर करना, छः प्रकार के रसों का प्रधान कारण बनना तथा प्राणियों के लिए अमृत तुल्य सिद्ध होना, कब्ज इत्यादि आन्तरिक मल पदार्थों को निकाल देना, स्नान के द्वारा शरीर को स्वच्छ करना, शरीर के विजातीय तत्वों को निकाल फेंकना, आमाशय, गुर्दों, त्वचा को क्रियाशील बनाना, शरीर में खाद्य पदार्थ का काम देना-जल के कुछ गुण हैं।
जल चिकित्सा की विधियाँ
जल चिकित्सा में रोगों के उपचार के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है- गर्म-ठंडे पानी का सेंक, विभिन्न प्रकार के स्नान, विभिन्न पट्टियाँ एवं लपेट तथा जल के आंतरिक प्रयोग की विभिन्न विधियां शामिल हैं।
गरम-ठंडा सेंक
(Hot & Cold Compress)
सभी तरह के दर्द एवं सूजन में इसके प्रयोग से तुरन्त लाभ होता है। गर्म-ठंडे सेंक से रक्त-वाहिनियाँ संकुचित-प्रसारित होती हैं। विजातीय पदार्थ बाहर निकलते हैं। पेट के रोगों में गर्म-ठंडा सेंक एक मुख्य उपचार है, इससे चमत्कारिक लाभ मिलता है।
मेहन-स्नान
(जननेंद्रिय प्रक्षालन)
जननेंद्रिय सम्बन्धी रोगों में यह स्नान रामबाण का कार्य करता है। हिस्टीरिया और मिर्गी में भी यह लाभदायक है। प्राकृतिक चिकित्सा सम्बन्धी अन्य उपचारों के साथ यह स्नान क्षय में भी लाभदायक है। बाँझपन, गर्भपात, डिप्थीरिया जैसे भयानक रोगों में भी उत्तम है। नासूर, भगन्दर, कारबन्कल आदि में भाप स्नान के बाद इसे देना चाहिए।
कटि-स्नान
(Hip Bathe)
इस स्नान से सैकड़ों रोगियों को लाभ हुआ है। जिन रोगियों को रक्तचाप बढ़ा हुआ हो, फालिज या ब्रोंकाइटिस, दमा प्लूरेसी, निमोनिया, प्रदाह अण्डकोष का बढ़ा हुआ होना, जांघों की रोगी की पीड़ा, सूजाक या गर्मी हो, पीलिया अथवा पाण्डु रोग हो, स्त्रियों को मासिक धर्म सम्बन्धी गड़बड़े हों, बाँझपन हो उनके लिए कटि स्नान बड़ा लाभदायक है।
वाष्प-स्नान
(Steam Bathe)
प्राण शक्ति की वृद्धि के लिए इसका उपयोग उत्तम माना गया है। इसका प्रयोग स्नायु दौर्बल्य, वायु विकार, दूषित जिगर, चक्कर आना, नेत्रों की बीमारियाँ, पुरुषों के जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों में किया जाता है। शरीर में मौजूद विषाक्त पदर्थों को बाहर करने, रक्तचाप को कम करने और हृदय को स्वस्थ रखने तथा जोड़ों की अकड़न को दूर करने में मददगार है।
रीढ़ स्नान
(Spinal Bathe)
रीढ़ मानव शरीर का मूल आधार अंग होता है, जिसका संबंध कशेरुकाओं के साथ-साथ विभिन्न नस-नाडियों के साथ होता है। रीढ़ को स्वस्थ, सक्रिय और रोग मुक्त बनाने के उद्देश्य से रीढ़ स्नान का अविष्कार किया गया। इस स्नान के प्रभाव से रीढ़ के विभिन्न रोग आसानी दूर हो जाते हैं एवं रीढ़ स्वस्थ व सशक्त बनती है। यह अनिद्रा रोग में भी लाभकारी है। कटि स्नान की तरह रीढ़ स्नान भी तीन प्रकार के होते हैं-ठण्डा, गरम, गरम-ठण्डा रीढ़ स्नान। तीनों के लाभ भी अलग-अलग हैं।
पाद स्नान
(Foot Bathe)
पाद स्नान-पैर मानव के अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है, जिन्हें स्वस्थ बनाने के लिए जल चिकित्सा की पाद स्नान विधि का उपयोग किया जाता है। पाद स्नान का उद्देश्य पैरों को रोगरहित, स्वस्थ एवं सक्रिय बनाना होता है। यह दिमाग को तरोताजा करने, तनाव घटाने तथा अनिद्रा जैसी नींद संबंधी बीमारियों में मदद करता है। पाद स्नान भी तीन प्रकार का होता है-ठण्डा पाद स्नान, गरम पाद स्नान और गरम-ठण्डा पाद स्नान। तीनों पाद स्नानों के लाभ भी अलग-अलग हैं।
बाँह स्नान
(Arm Bathe)
हाथ भी मानव के अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है, जिस प्रकार पैरों को स्वस्थ बनाने के लिए पाद स्नान विधि का उपयोग किया जाता है, ठीक उसी प्रकार हाथों को स्वस्थ व रोग रहित बनाने के लिए जल चिकित्सा की बांह स्नान विधि का उपयोग किया जाता है। बांह स्नान भी तीन प्रकार का होता है-ठण्डा बांह स्नान, गरम बांह स्नान और गरम-ठण्डा बांह स्नान। तीनों स्नानों के लाभ भी अलग-अलग हैं। यह हाथों की बीमारियों के अलावा अन्य बहुत सी बीमारियों में लाभप्रद है।
पूर्ण डूब स्नान
(Immersion Bath)
ठण्डा पूर्ण स्नान से सम्पूर्ण शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं तथा तंत्रिकाओं को बल मिलता है। शराब आदि दुर्व्यसनों से ग्रस्त रोगियों के लिए यह सर्वाधिक लाभकारी स्नान है। यह स्नान विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों, जीर्ण उदर रोगों, वृक्क से संबंधित विकारों एवं आमाशय संबंधी रोगों में लाभ प्रदान करता है। इस स्नान के प्रभाव से मोटापा दूर होता है। अनिद्रा रोग में भी यह लाभकारी है।
लपेट एवं पट्टियाँ जल चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण भाग है जिनका प्रयोग प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सकों एवं आयुर्वेदिक चिकित्सकों से लेकर आधुनिक चिकित्सकों तक ने अपनी चिकित्सा में किया है तथा सामान्य से लेकर गंभीर रोगों तक में इसके लाभकारी प्रभाव प्राप्त किए हैं। जल चिकित्सा में प्रयुक्त विभिन्न पट्टियों को जल के तापक्रम के आधार निम्न लिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-जल की ठंडी पट्टी, जल की गरम पट्टी और बर्फ की पट्टी।
जल की ठंडी पट्टियाँ
जल चिकित्सा में जल की ठंडी पट्टियों का प्रयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है। ये जल की ठंडी पट्टी से त्वचा के रोमकूपों के माध्यम से शरीर की अनावश्यक गर्मी बाहर निकलती है एवं त्वचा रोगों में लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा भी विष का शोषण करने में, शरीर के किसी अंग अथवा स्थान चोट के कारण जलन अथवा सूजन होने पर, आग आदि से जलने के स्थान पर जलन होने पर, अचानक पैर में मोच आने अथवा हड्डी के मुड जाने से उत्पन्न दर्द एवं सूजन में, चोट लगने पर, शरीर का तापक्रम बढने की अवस्था तथा रक्तस्राव बंद नहीं होने की अवस्था इत्यादि में लाभकारी प्रभाव रखती हैं।
जल की गरम पट्टियाँ
जल की गर्म पट्टियों का नाम सुनने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इनको गर्म जल का प्रयोग करते हुए बनाया जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता अपितु इन पट्टियों में भी ठंडे जल का ही प्रयोग किया जाता है। इनमें अन्तर यह होता है कि इन पट्टियों को ठंडे जल से भलि-भांति तर करके अच्छी प्रकार निचोड़ने के बाद ही प्रयोग किया जाता है तथा इस पट्टी की प्रकृति एवं प्रभाव को गर्म बनाने के लिए इसके ऊपर से ऊनी कम्बल की पट्टी को लपेट दिया जाता है। जल की गर्म पट्टी शरीर से विजातीय विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में विशेष लाभकारी, गुणकारी एवं प्रभावकारी सिद्ध होती है।
बर्फ की पट्टियाँ
बर्फ की पट्टियों के अन्तर्गत पूर्ण रुप से ठंडे जल अथवा बर्फ का प्रयोग किया जाता है। बर्फ की पट्टियों को शरीर के विभिन्न भागों जैसे पैर, हाथ, पेट, कमर, माथे एवं सिर आदि पर प्रयोग किया जाता है। इन पट्टियों का प्रयोग करने से शरीर की माँसपेशियों में अतिरिक्त खिचाव दूर होता है एवं माँसपेशी को आराम मिलता है। मांसपेशी में चोट लगने पर तुरन्त बर्फ की पट्टी का प्रयोग करने से दर्द एवं सूजन में तुरन्त आराम मिलता है। बर्फ की पट्टी का प्रयोग प्रमुख रुप से शोथ के स्थान पर किया जाता है। जोड़ों में सूजन, चोट में सूजन, घाव जाले स्थान पर सूजन तथा प्रीय ज्वर आदि में इन पट्टियों को प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है।
गीली चादर लपेट
गीली चादर लपेट में गीलीसूती चादर का प्रयोग किया जाता है। इस लपेट का प्रयोग करने से शरीर में स्थित विषाक्त तत्व त्वचा के रोम छिद्रों के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। इसके साथ-साथ इस लपेट से सम्पूर्ण शरीर की तंत्रिकाएं एवं नाडियां भी मलहीन एवं स्वच्छ बनती है। शरीर को स्वस्थ एवं रोगरहित बनाने में इस लपेट महत्वपूर्ण भूमिका वहन करती हैं।
गीली चादर लपेट एक लाभकारी एवं दुष्प्रभाव रहित रोगोपचार की विधि है अतः वर्तमान समय में विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है।
उषापान
वमन क्रिया
शंख प्रक्षालन
एनीमा
जलपान