रोगों का मूल कारण क्या है? आयुर्वेद के अनुसार व्याधि-चिकित्सा के दो अंग हैं। 'रोगानुत्पादनीय' अर्थ व्याधि हो ही नहीं, इसका प्रयास किया जाए और 'रोगनिवर्तनीय' अर्थात् व्याधि उत्पन्न होने पर उसे दूर करने का प्रयास किया जाये। इन दोनों में से आयुर्वेद की दृष्टि में प्रथम अंग (व्याधि हो ही नहीं) का महत्त्व अधिक है और इसी प्रथम अंग की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। रोग का प्रादुर्भाव हो ही नहीं, इसलिये यह जानना आवश्यक है कि रोगों का मूल कारण क्या है? पाप और रोगों का एक गहरा रिश्ता है। रोग शरीर में हो या मन में हों-इनके बीज अवचेतन मन की परतों में छिपे होते हैं। आयुर्वेद को व्यवस्थित रुप देने वाले महर्षि चरक के अनुसार पिछले जन्मों के पाप (अयोग्य कर्म से...