जल की ठण्डी पट्टियां (Water Cold Pack)
जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के स्नान हमारे शरीर से मलों को दूर करने व शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों के उपचार में सहायक होते हैं। ठीक उसी प्रकार शरीर के विभिन्न भागों में गीली पट्टियों के प्रयोग से उस स्थान विशेष या फिर पूरे शरीर में स्थित रोगों को दूर किया जा सकता है। ये गीली पट्टियां दिखने में जितनी अधिक साधारण प्रतीत होती है उतनी ही शक्तिशाली व कारगर सिद्ध होती है। जल पट्टियां मुख्यतया दो प्रकार की होती है-1. जल की ठण्डी पट्टी और 2. जल की गर्म पट्टी। इस लेख में हम जल की ठंडी पट्टियों के विषय में विस्तार से चर्चा करते हैं-
1. जल की ठण्डी पट्टियां
ठण्डी जल पट्टी के लिये देने से पहले सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक हो जाता है कि पट्टी के लिये किस प्रकार के कपड़े का उपयोग करना चाहिये? उसकी चैड़ाई-मोटाई कितनी रखनी चाहिये? तथा पट्टी का प्रयोग कितने समय तक चाहिये?
जल की पट्टी तैयार करने से पहले हमेशा यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह कपड़ा भली-भांति जल को सोखने वाला हो। दूसरी बात पट्टी के लिए सफेद कपड़े का ही प्रयोग किया जाये। इसके लिए खादी का सफेद कपड़ा ही प्रयोग सर्वोत्तम होता है, क्योंकि खादी के कपड़े में जल को सोखने के साथ अधिक देर तक रोके रखने की भी क्षमता होती है। अन्य कपड़ों में यह गुण खादी के अपेक्षा कम होता है। जिससे बार-बार पट्टी बदलना या गीला करने का कार्य बढ जाता है, जिससे लाभ भी कम मिल पाता है। दूसरी बात पट्टी कितनी चैड़ी हो तो इसका सरल तरीका है कि रोगी के जिस अंग पर पट्टी देने हो वह रोगी अंग के अलावा भी काफी स्थान घेर सके। जैसे यदि गले पर पट्टी लगानी हो तो कुछ हिस्सा गले से नीचे व कुछ हिस्सा गले से ऊपर ही रहना चाहिये। अंग विशेष के आधार पर चैड़ाई होनी चाहिये व इसके उचित प्रभाव के लिये पट्टी कम से कम आधा से पौन इंच तक मोटा रखना चाहिये ताकि पट्टी जल्दी से सूखे नही और बार-बार गीला न करना पड़े।
पट्टी के उपयोग करने का कोई समय भी निश्चित नहीं किया जा सकता, इसका प्रयोग तब तक किया जा सकता है, जब तक कि रोग दूर न हो जाये। हालांकि यह अत्यधिक लाभकारी है। परन्तु इसका प्रयोग लगातार बहुत अधिक समय तक नहीं करना चाहिये। ऐसा करने से उस स्थान में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है। या फिर रूक भी सकता है इससे बचने के लिये बीच-2 में 5-10 मिनट के लिये पट्टी को खोलकर उस स्थान को सुखाकर और रगड़कर गर्म कर लेना चाहिये, यदि रगड़ना संभव न हो जैसा कि चोट लगने पर या हड्डी टूटने पर अधिक दर्द होने की स्थिति में होता है तो उस स्थान पर गर्म सेंक देकर गर्म करना चाहिये। तत्पश्चात पट्टी का प्रयोग दोबारा करना चाहिये।
ठण्डी पट्टी का प्रयोग
इस पट्टी का प्रयोग प्रत्येक दर्द, जलन, टपकन, शोथ, चोट, ज्वर जहरीले जानवरों के काटने, मधुमक्खी या ततैया के डंक मारने, हड्डी टूटने, मोच आने तथा फोड़े आदि पर इसका प्रयोग लाभ के साथ किया जा सकता है। दर्द जितना ही अधिक हो पट्टी की मोटाई भी उतनी ही अधिक होनी चाहिये तथा पट्टी बांधकर हर आधे घण्टे में उसे तर करते रहना चाहिये यदि तब भी दर्द कम न होने पाये तो उस अंग में पानी की धार भी लगातार डालनी चाहिये और यह प्रक्रिया तब तक दोहरानी चाहिये जब तक कि दर्द कम न हो जाये। ऐसे करने से निश्चय ही लाभ मिलता है बस इस बात का ध्यान रहे कि जल की धार केवल दर्द वाले स्थान पर ही न पड़कर पूरे अंग पर पड़े। लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ठण्डी जल पट्टी का प्रयोग लम्बे समय तक लगातार नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे रक्त प्रवाह के रूकने से अंग सुन्न पड़ सकता है।
ठण्डी जल पट्टी का प्रयोग खुले जख्म पर भी किया जा सकता है। लेकिन इसके लिये सबसे पहले जख्म पर नारियल या अन्य मीठे तेल से भीगा साफ सूती वस्त्र का टुकड़ा रख देना चाहिये। चोट लगने की अवस्था में यदि रक्त बहना बन्द न हो रहा हो तो भी इसका प्रयोग लाभ के साथ किया जा सकता है। इससे रक्त का टपकना शीघ्र ही बन्द हो जाता है। आराम मिलेगा।
जब किसी को आप आग से जलने या झुलसने से आक्रान्त देखें, तुरन्त जले-झुलसे अंग पर ठंडे जल की पट्टी कम से कम एक घंटे तक रखें, साथ में पट्टी पर ठंडे पानी की धार डालते रहें-उसे परम शान्ति मिलेगी, जलन दूर होगी और घाव या फफोला भी नहीं होगा। यदि पूरा शरीर जल जाय तो तुरंत उसे पानी के टब या तालाब में डूबो दें। सांस लेने के लिए नाक को पानी से बाहर रखें। यह याद रखें कि जला-झुलसा अंग पानी में लगातार एक या दो घंटे डूबा रहे। उस पर पानी छिड़कना नहीं चाहिए-इससे हानि होती है। पानी में डूबोये रखना ही कारगर इलाज है।
इसी तरह जब किसी को मोच आ जाय या चोट लग जाये तो तुरन्त उस स्थान पर खूब ठंडे पानी की पट्टी लगा दे-बर्फ भी लगा सकते हैं। इससे न तो सूजन होगी, न दर्द बढेगा। गरम पानी की पट्टी लगायेंगे या सेंक करेंगे तो सूजन आ जायेगी और दर्द बढ जायेगा। ज्वर आदि की अवस्था में शरीर का तापक्रम बढने की अवस्था में माथे पर जल की ठंडी पट्टी का प्रयोग करने से शरीर का तापक्रम सामान्य हो जाता है। जल की ठंडी पट्टी से त्वचा के रामकूपों के माध्यम से शरीर की अनावश्यक गर्मी बाहर निकलती है एवं त्वचा रोगों में लाभ प्राप्त होता है। इन सभी के अतिरिक्त ठण्डी जल पट्टी का प्रयोग व्यापक रूप से किया जा सकता है और स्वास्थ्य लाभ लिया जा सकता है।
सावधानियांः
यद्यपि जल की ठंडी पट्टियां अत्यन्त लाभकारी एवं दुष्प्रभावरहित होती हैं, किन्तु फिर भी इन पट्टियों का प्रयोग एक बार में बहुत अधिक लम्बे समय तक (लगातार 30 मिनट से अधिक नहीं) नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही इन पट्टियों को देने में स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। पट्टियों को अच्छी तरह धोकर धूप में सूखाकर उपयोग में लेना चाहिए।
विशेष निर्देश
25 से 30 मिनट की समयावधि तक ठंडे जल की पट्टियों का प्रयोग किया जाए, लेकिन विशेष परिस्थितियों अथवा रोगावस्था में रोगी के रोगानुसार इन पट्टियों समयावधि को घटाया अथवा बढाया जा सकता है।
जल की ठंडी पट्टियां
शरीर के विभिन्न अंगों जैसे पेट, माथे, सिर, कमर आदि की संरचना के अनुसार जल की ठंडी पट्टियों को तैयार किया जाता है।